डायरी सखि,
कोरोना के बाद कहीं आना जाना नहीं हुआ था । बच्चों का मन था कि कहीं घूमकर आयें । तो अचानक प्रोग्राम बन गया और शनिवार की शाम को हम लोग यहां माउंट आबू आ गये ।
सोचा था कि यहां गर्मी से कुछ निजात मिलेगी । मिली भी , पर ज्यादा राहत नहीं मिली । जहां हमें सरकारी कॉटेज मिला था , उसके पीछे ही नक्खी झील थी । कॉटेज था भी बड़ा शानदार । झील के किनारे रहने का आनंद आ गया । अब श्रीमती जी की झील सी आंखों के बजाय प्राकृतिक झील में डूबने का मौका मिल रहा था । अब तक कविताओं में ही लिखा करते थे
प्रकृति का मनोरम नजारा हो
झील का निर्मल सा किनारा हो
संगमरमरी बांहों का सहारा हो
काश, ऐसे आशियाने में गुजारा हो
अब वो आरजू पूरी हो गई थी ।
झील भी थी और किनारा भी था
मौसम बेईमान भी था प्यारा भी था
इश्क का साजो सामान सारा भी था
ऐसे में एक पागल दिल हमारा भी था
नक्खी झील के बारे में कहा जाता है कि इसे नाखूनों से खुरच खुरच कर बनाया गया था । अब सत्य कुछ भी हो मगर यह झील सैलानियों के आकर्षण का केंद्र बिन्दु अवश्य है । नवविवाहित युगल बहुत आते हैं यहां मौज मस्ती करने के लिए । झील का पानी इतना गंदा था कि वह गंदगी के कारण हरा सघन हो गया था । झील के बीचों बीच एक बहुत ऊंचा फव्वारा था जिसके नीचे से बोट निकालने के लिए अनेक लड़के बहुत लालायित थे । अपनी संगिनी को भिगोने में उन लड़को को बड़ा आनंद आ रहा था । एक लड़की बेचारी उस गंदे पानी से बचने के लिए लाइफ जैकेट को ही ओढ बैठी । मगर वह लड़का भी पक्का आशिक था । चार पांच चक्कर लगाकर उसकी संगिनी को पूरा भिगोकर ही माना वह ।
एक और दंपत्ति भी बोट चला रहे थे । बच्चे भी उनके साथ थे । उनकी श्रीमती जी पानी को देखकर इतनी आह्लादित हो गईं कि उस गंदे पानी में हाथ डालकर उसे अपने बच्चों और अपने श्रीमान जी पर उछाल उछाल कर हो हो करके हंसने लगी । धन्य हैं ऐसे श्रीमंत जो पत्नी द्वारा उछाले गए गंदे पानी में भी एन्जॉय कर लेते हैं ।
विश्व प्रसिद्ध देलवाड़ा का मंदिर भी यहीं पर है । प्रत : 11 बजे एन्ट्री मिली थी । मोबाइल बाहर ही रखवा लिया गया । शायद प्रबंधकों को डर लगा होगा कि अगर भगवान जी ने कोई मोबाइल देख लिया तो पता नहीं उसे पाने के लिए वे क्या कर बैठें ?
वैसे दो तीन अच्छी बात भी वहां बाहर लिखी हुई थी कि बरमूडा, लुंगी जैसे कपड़े पहनकर अंदर नहीं जाएं। लोग कैजुअल्स में बहुत रिलैक्स फील करते हैं । आजकल लोग इतने कैजुअल हो गये हैं कि बरमूडा में भी शादी कर सकते हैं । ऐसे लोगों का ध्येय वाक्य होता है "क्या फर्क पड़ता है" ? शुक्र है कि मुझे वहां पर कोई इतना कैजुअल नजर नहीं आया ।
महिलाओं के कपड़ों की तो बात ही मत पूछो । लोग कहते हैं कि महिलाओं पर पुरुषों ने इतनी पाबंदी लगा रखी है कि वे बेचारी सांस तक नहीं ले पा रही हैं । हां , मुझे पाबंदी तो नहीं "पाबंद" जरूर दिखाई दिए थे जो कुछ फटे पुराने से कपड़ों पर महिलाओं ने लगा रखे थे । मैंने एक पाबंद के कपड़े पहनने वाली औरत को गरीब समझकर पांच रुपए देने चाहे तो उसने कहा "मैं कोई भिखारी नहीं हूं"
"तो फिर आप कौन हैं देवी, और ये कपड़े " ?
"ये तो लेटेस्ट डिजाइन वाले बहुत मंहगे कपड़े हैं" ।
मैं ताज्जुब में पड़ गया । अगर ऐसे कपड़े अमीरों के हैं तो गरीबों के कैसे होंगे ?
कुछ और महिलाओं के पहनावे ने मेरा ध्यान अपनी ओर आकृष्ट किया । एक महिला ने अपनी जींस आगे और पीछे से काट रखी थी जिसमें से उसकी जांघें बाहर आने को बेताब थीं । मुझे बेचारी जांघों पर बड़ा तरस आया और महिला की सोच पर भी । बेचारी जांघों पर कितना जुल्म कर रही थी वो महिला ? आधी छुपा रखी थी और आधी दिखा रखी थीं । क्यों नहीं उन्हें आजाद कर देती ? जब देश आजाद है, सब लोग आजाद हैं तो फिर ये दुराव छुपाव क्यों इन बेचारी जांघों से ?
एक और देवी जी ने इस तरह ब्लाउज पहना था कि लगभग सारी पीठ दिखाई दे रही थी । एक बमुश्किल दो इंच की पट्टी ने सब कुछ बांध रखा था । बांहों पर भी एक बहुत बड़ा "कट" था । शायद वह यह दिखाना चाह रही थीं कि उनकी पीठ का और बांहों का एक ही रंग है , कोई गलतफहमी मत पाल लेना ? कभी कभी तो लगा कि लोग "माउंट" देखने आये थे या दिखाने ? भगवान के मंदिर में इन कपड़ों को पहनकर जाने का मतलब क्या हो सकता हैं ? शायद ये महिलाएं द्वापर युग में गोपियां रही हों और भगवान को पहचानने में कोई दिक्कत नहीं हो , इसलिए इन्होंने ऐसे वस्त्र पहने हों ? पता नहीं सच क्या था , मगर जो भी था मुझे ठीक नहीं लगा ।
क्रमश :
हरिशंकर गोयल "हरि"
27.6 22
Radhika
09-Mar-2023 12:41 PM
Nice
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Gunjan Kamal
06-Mar-2023 08:51 AM
Nice 👍🏼
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Pallavi
29-Jun-2022 07:04 PM
Nice 👍
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